संघ समर्पणा गीत

संघ हमारा अविचल मंगलए नन्दनवन.सा महक रहा।
हम सब इसके फल व कलियांए सुन्दरतम निज संघ अहा।।१।।
वीर प्रभु के उपदेशों नेए संघ की महिमा गाई है।
सुर.नर वन्दन करे संघ कोए संघ साधना भाई है।।२।।
संघ समष्टि का हित करताए व्यष्टि उसमें शामिल है।
संघ हेतु निज स्वार्थ तजे जोए वही प्रशंसा काबिल है।।३।।
व्यक्तिवाद विद्वेष बढाताए संघवाद दे प्रेम सदा।
व्यक्तिभाव को छोड समर्पणए संघ भाव में रहे सदा।।४।।
व्यक्ति अकेला निर्बल होताए संघ सबल होता मानें।
संघे शक्तिः कलौ युगे कीए सत्य भावना पहचानें।।५।।
एकसूत्र कोई भी तोडेए रस्सी हस्ती को बांधे।
एक.एक मिल बना संघ यहए दुःसम्भव को भी साधे।।६।।
संघ श्रेय में आत्मश्रेय हैए ऐसा दृढ विश्वास मेरा।
संघ में मुझमें भेद न कोईए बोल रहा हर श्वांस मेरा।।७।।
संघ परम उपकारी हमकोए संघ ने सम्यकबोध दिया।
संघ न होता हम क्या होतेए संघ ने हमको गोद लिया।।८।।
शैशवए यौवनए वृद्धावस्थाए सदा संघ उपकारी है।
भवसागर से तारणहाराए हम इसके आभारी है।।९।।
नगरए चक्रए रथए पद्मए चंद्रए रविए सागरए मेरू की उपमा।
सूत्रा नन्दी में संघगौरव कीए क्या कोई है कम महिमाघ्।।१०।।
प्रेमसूत्र से बंधा संघ हैए हिल.मिल आगे बढते हैं।
निन्दाए विकथा तज गुणीजन केए गुणगण मन में धरते हैं।।११।।
दूर हटा छलए छद्म अहं कोए सरल सहज सद्भाव धरें।
परहित हेतु तज निज इच्छाए सहज सुकोमल भाव वरें।।१२।।
नाम अमर है उन वीरों काए जिनने संघ सेवा धारी।
अपना कुछ ना सोच कियाए सर्वस्व संघ पे बलिहारी।।१३।।
यही प्रार्थना वीर प्रभु सेए ऐसी शक्ति दो हमको।
संघ सेवा में झौंके जीवनए और न कुछ सूझे हमको।।१४।।
संघ हेतु कुर्बान हमाराए तन मन जीवन सारा है।
संघ हमारा ईश्वरए हमकोए संघ प्राण से प्यारा है।।१५।।
चमडी कागज खून की स्याहीए अस्थि लेखनी लेकर के।
रचें भले संघ गौरवगाथाए उऋण न हो उपकारों से।।१६।।
अरिहंत सिद्ध सुदेव हमारेए गुरु निर्ग्रन्थ मुनिश्वर हैं।
जिन भाषित सद्धर्म दयामयए नित्य यही अन्तर स्वर है।।१७।।
सद्गुरु आज्ञा ही प्रभु आज्ञाए इसमें भेद न कोई है।
शास्त्र.शास्त्र में जगह.जगहए पर वीर वचन भी वो ही है।।१८।।
संघनायक ! संघ मालिकए हम सब साधुमार्ग अनुयायी हैं।
और नहीं दूजे हम कोईए बस तेरी परछाई हैं।।१९।।
रत्नत्रय शुद्ध पालन करकेए तोडे कर्मों की कारा।
नाना गुण का धाम संघ हैए घर.घर गूंजे यह नारा।।२०।।
स्वार्थ.मान को छोड संघ कीए सेवा जो नर करता है।
इह.पर लौकिक कष्ट दूर करए सौख्य संपदा वरता है।।२१।।